गृहस्थ मार्ग

Humbly request you to share with all you know on the planet!

ਬਾਬਾ ਨੰਦ ਸਿੰਘ ਜੀ ਮਹਾਰਾਜ ਨੇ ਇਕ ਵਾਰ ਫੁਰਮਾਇਆ ਕਿ ਗ੍ਰਹਿਸਥੀ ਦੀ ਸੁੱਚੀ ਕਮਾਈ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਦੀ ਨਿਆਈਂ ਹੈ ਅਤੇ ਬਿਹੰਗਮਾਂ ਵਾਸਤੇ ਪੈਸਾ ਜ਼ਹਿਰ ਹੈ।

बाबा नंद सिंह जी महाराज भले ही सारी उम्र यती-सती रहे किंतु दूसरों को उन्होंने हमेशा गृहस्थ जीवन में रहने का उपदेश दिया। संसार के सभी महान् त्यागियों के वे भले ही शहंशाह थे, तो भी उन्होंने दूसरों को अपने काम-काज करते हुए सच्चाई, पवित्रता और ईमानदारी से रोजी-रोटी कमाने का उपदेश देकर संसार-पथ पर चलने की प्रेरणा दी। बाबा नंद सिंह जी महाराज ने एक बार एक साखी सुनाई-

दशमेश पिता श्री गुरु गोबिन्द सिंह जी महाराज का दरबार सजा हुआ है। वानप्रस्थियों की एक टोली वहाँ पहुँची। बड़े सत्कार के साथ उन्हें वहाँ बिठाया गया। दीवान के बाद उन्होंने कलगीधर पातशाह से एक प्रश्न किया-

‘क्या गृहस्थ आश्रम में भी मुक्ति मिल सकती है?’

सच्चे पातशाह ने फरमाया-

‘क्या आप सभी अब गृहस्थ आश्रम त्याग कर वानप्रस्थ में हो? आप इस समय किस-किस वस्तु का त्याग करके आए हो?’ फिर आप ही मार्गदर्शन करते हुए फरमाया- ‘क्या आपने अपने शरीर के सारे सुख त्याग दिए हैं?’ उन्होंने उत्तर दिया- ‘जी महाराज;’ ‘क्या आपने धन भी त्याग दिया है?’ उधर से आवाज आयी- ‘जी महाराज!’ ‘क्या आपने मन के विचारों और आश्रय के सुखों को भी त्याग दिया है?’ ‘हाँ गरीबनिवाज़; तन-मन-धन सब कुछ त्याग करके हम केवल उसके सहारे निकल पड़े हैं।’

सच्चे पातशाह ने उनसे कहा कि रात को यहाँ विश्राम करें। इस विषय पर शेष बातें कल करेंगे।

ब्रह्म मुहूर्त में ही ‘आसा दी वार’ का पाठ कीर्तन शुरु हो गया। सभी सिख, माई, भाई सारी संगत इलाही कीर्तन में लीन बैठी है। कई घंटो के बाद भोग पड़ा। चारों तरफ से संगते अपने घरों से प्रसाद को सिर पर उठाए आ रही हैं। गुरु वानप्रस्थियों से पूछते हैं-
‘क्या देखा है?’

उनकी ओर से उत्तर मिला-

‘गरीब निवाज़! मनोहर ईश्वरीय कीर्तन हो रहा था, सारी संगत कीर्तन-श्रवण में लीन बैठी थी।’

इस पर गुरु गोविन्द जी ने फरमाया-

‘ये सभी तो अपना मन गुरु को अर्पित किए बैठे हैं।’

फिर फरमाया कि उन सिखों को देख रहे हो जो संगतों के लिए अपने घरों से ‘प्रसादे’ ला रहे हैं। ये तो अपना धन भी गुरु को अर्पित किए बैठे हैं।

फिर आगे फरमाया-

‘जोगी जी, कुछ दिन हुए हैं, यहाँ एक भारी युद्ध हुआ था। जिसमें धर्म की खातिर, सच की खातिर, जुल्म का मुकाबला करते हुए कई सिख शहीद हुए और इस तरह गुरु की खातिर उन्होंने अपना तन भी अर्पित कर दिया। अपना सब कुछ (तन-मन-धन) अर्पित करते हुए वे हर वक्त हमारे आदेश की प्रतीक्षा में रहते है।’

गुरु साहिब जी ने फ़रमाया-

‘अब आप अपनी सुनाओ कि सब कुछ त्याग कर आए हो और आपकी क्या अवस्था है? आपने ये चिपियाँ साथ रखी हैं इनमें क्या है? वानप्रस्थियों ने छिपाने की कोशिश की, पर सिखों ने तेजी से लेकर गुरु साहिब के सामने रख दी।’

उन चिपियों की लाख पिघलायी गयी तो उनमें से अशरफ़ियाँ निकली। सच्चे पातशाह ने उन्हें देखते हुए पूछा-

‘ये किसलिए हैं। ’

इस पर उनका गुरु बोला,

गरीब निवाज़! यदि कभी बुरा वक्त आ जाए तो उस वक्त के लिए ये रखी है।

अन्तर्यामी गुरु साहिब कहने लगे कि आपके भगवे चोले इतने भारी क्यों लग रहे हैं? इतना सुनते ही वानप्रस्थी घबराए और सिखों ने देखा कि उन भगवे चोलों की तहें पैसे भरकर सिली गई हैं। मुक्तिदाता, ब्रह्मज्ञान के प्रकाश स्वरूप और अज्ञानहर्त्ता दसवें गुरु नानक श्री गुरु गोबिन्द सिंह जी ने फिर अपने शुभ मुखारविन्द से इस तरह ज्ञान-अमृत की वर्षा की-

‘ये गृहस्थी सिख अपना तन-मन-धन सब कुछ अर्पित करके आदेश पाने के लिए सावधान खड़े हैं और वानप्रस्थी होते हुए भी आपने कुछ नहीं त्यागा। न ही सेवकों ने अपने गुरु के आगे ये तीन वस्तुएँ अर्पित की और न ही आप के गुरु ने परब्रह्म परमेश्वर के सामने ये तीनों वस्तुएँ अर्पित की हैं।’

वानप्रस्थियों के गुरु को सम्बोधित करते हुए दसवें पातशाह ने फिर फरमाया, कि तेरे सेवकों को तुझ पर कोई भरोसा नहीं और तुम्हें परब्रह्म परमेश्वर पर कोई भरोसा नहीं। दशमेश पिताजी फिर उनसे पूछते हैं; तो फिर सन्यासी कौन हुआ? ये गृहस्थी वास्तविक रूप में सन्यासी हैं।

बाबा नरिन्दर सिंह ने बाबा जी की साखी सुनाते हुए आगे फरमाया, कि ऐसे महान् गुरु के ऐसे प्यारे सिखों के चरणों में मुक्ति इधर-उधर भटकती फिरती है।

आदरणीय भाई रतन सिंह ने बताया कि बाबा जी की सेवा करते-करते मेरे और नत्था सिंह के दिल में यह ख़याल आया कि अच्छा है कि बाबा जी की सेवा ही करते रहें, विवाह करके जंजाल में क्यों पड़े? अन्तर्यामी बाबा जी के पास हम दोनों ही खड़े थे, उन्होंने इस तरह फरमाया-

‘हमने आपको विहंगम नहीं बनाना क्यांकि गृहस्थ मार्ग प्रधान है। विवाह करना है, विवाह करके सेवा नहीं छोड़नी तथा ऊँचा और सच्चा जीवन व्यतीत करना है। गृहस्थ जीवन में भी त्याग और बलिदान के मौके आते हैं। ऐसे मौकों पर गुरु साहिबान द्वारा स्थापित आदर्शों को याद रखो। गुरु गोबिन्द साहिब जी ने ऐसा अवसर आने पर अपना सर्वस्व ही न्यौछावर कर दिया था।’
बाबा नंद सिंह जी महाराज ने एक बार फरमाया, कि गृहस्थी की सुच्ची कमाई अमृत सरीखी पवित्र है तथा विहंगमों के लिए पैसा ज़हर है।