बाबा नरिन्दर सिंह जी
बाबा नरिन्दर सिंह जी के हृदय और श्वासों में बाबा नंद सिंह जी महाराज बसे हुए थे। आप ने अपनी ज़िन्दगी का हर पल ईश्वरीय चिन्तन और गुरु-ध्यान की अवस्था में व्यतीत किया।
उन्होंने अपना जीवन एक नवीनतम व विलक्षण आध्यात्मिक अभ्यास में बिताया, जो आज तक के आध्यात्मिक समाज से बिल्कुल भिन्न था। उनके सच्चे प्रेम और एकाग्रता को कई तरह की चुनौतियों और कठिन परीक्षाओं से गुज़रना पड़ा किन्तु समदृष्टि के स्वामी बाबा नरिन्दर सिंह जी ने प्रत्येक परीक्षा में अपने प्रभु के ही दिव्य दर्शन किए और अपने उद्देश्य में सफल रहे।
लख बाहे किआ किजइ।
महान बाबा जी ने पिता जी को ना केवल अपनी नित्य उपस्थिति और अंग-संग रहने का वादा ही किया था। बल्कि चुनौतीपूर्ण विपरीत स्थितियों में भी सुरक्षा का भरोसा दिया था।
इस प्रकार उन्हें पूर्ण ईश्वरीय कृपा, सहायता और सुरक्षा उपलब्ध हो चुंकी थी।
वे पूरी तरह अपने आराध्य बाबा नंद सिंह जी महाराज के चरणों मे लीन थे। मौत से निडर वे अपने कर्त्तव्यों के प्रति पूर्ण रूप से लगनशील और समर्पित थे। वे अपने कार्यों में अथक और पूर्णतया क्रियाशील थे।
1947 में देश विभाजन के दौरान रावलपिण्डी में हुए भयानक नरसंहार से निपटने में उनकी अनुपम शूरवीरता और बहादुरी के कार्य अनदेखे और अप्रशंसित ही रह गए।
रूहानी प्यार ही उनके जीवन की सर्वोच्च शान थी। उनके हृदय में अपने इष्ट को नमस्कार निवेदित करने की तीव्र लालसा थी। इस तरह सलामी देने की पावन रीति का सूत्रापात हुआ।
भुच्चों कलां के महान बाबा हरनाम सिंह जी महाराज ने पचास साल पहले ही यह भविष्यवाणी कर दी थी कि उन का सब से प्यारा पुत्रा बैण्ड लेकर आएगा और उन्हें भावभीनी सलामी भेंट करेगा।
अपने परमपिता परमात्मा के लिए उन की सलामी वस्तुतः उनकी सच्ची प्रार्थना की चरम अवस्था थी कि कैसे प्रभु के रंग में रंगा हुआ एक सच्चा प्रेमी अपने प्रिय परमात्मा को पुकारता है, कैसे एक विरहाकुल हृदय से टीसभरी वेदना निकलती है, कैसे एक सच्चा सेवक अपने मालिक के पवित्र चरणों में अपना सब कुछ न्यौछावर कर देता है, फिर कैसे सच्चे प्रेम का शक्तिशाली प्रभाव सभी हृदयों को शुद्ध करके परमानन्द के सागर में डुबो देता है।
उनकी दिव्य पुकार आत्मरस, नामरस और प्रेमरस से परिपूर्ण होती थी जो जादुई तरीके से संगत को अपने आगोश में ले लेती थी।
देह त्यागने के पाँच दिन उपरान्त भी उनके पवित्र चेहरे के तेज और कान्ति में कोई कमी नहीं आई थी।
बाबा जी की अपार कृपा के फलस्वरूप ही उन्हें यह दिव्य दृष्टि प्राप्त हुई थी जिसके द्वारा वह बाबा नंद सिंह जी महाराज के पावन स्वरूप में उस निरंकारी ज्योति के दर्शन करते थे। महान बाबा जी का भौतिक शरीर परम आनन्दमयी प्रकाश में परिवर्तित हो जाता था। फिर वही महाप्रकाशमयी निरंकार ज्योति बाबा नरिन्दर सिंह जी के सम्पूर्ण अस्तित्व को अपने आगोश में ले लेती थी। इस महाप्रकाश ने मेरे पूज्य पिताजी के शरीर में समा कर उन्हें भी प्रकाश पुंज बना दिया था।
बाबा नरिन्दर सिंह जी ने एक बार फ़रमाया था
अपने चरन पराति॥
एकु नामु दीओ मन मंता
बिनसि न कतहू जाति॥1॥
सतिगुरि पूरै कीनी दाति
हरि हरि नामु दीओ कीरतन कउ
भई हमारी गाति॥ रहाउ॥
गुरु नानक साहिब से किए गये इस दयनीय व विनम्र अनुरोध के बारम्बार रटन व जाप से अनेक पीड़ित आत्माओं को दुःखों से, राेगयों को रोगों से, पापियों को उनके पापों से मुक्ति मिल गयी है और गुरु नानक साहिब के दर्शनों की प्यासी आत्माओं को तृप्ति मिली है। उन्होंने परम प्यारे गुरु नानक देव जी की दिव्य कृपा का आनंद प्राप्त कर लिया है।
श्री गुरु नानक साहिब सर्वव्यापक हैं और सबमें वास करते हैं, सब में समाये हुए हैं।