प्रभु-भोग (प्रसाद) दर्शन

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जहाँ तक भोग (प्रसाद) की दार्शनिकता का सम्बन्ध है, यह अटल सत्य है कि जिन महान संतों और भक्तों की वाणी श्री गुरु ग्रन्थ साहिब में अंकित है, भोग-प्रसाद के विषय में उनके मत अपने-अपने अनुभवों पर आधारित हैं। इसकी पुष्टि श्री गुरु ग्रन्थ साहिब और भाई गुरदास जी की ‘वारों’ में की गयी है। यह अटल सत्य कई और दिव्य आत्माओं के अनुभवों पर भी आधारित है।

जैसा कि पहले भी कहा गया है कि जो कुछ भी हम परमात्मा के लिए अर्पित करते हैं, उसे हम अपना नहीं कह सकते। संसार की हर चीज़ हमें प्रभु सतगुरु की ओर से मिली हुई है।

सतगुरु पदार्थ नहीं माँगते, वे भावना के भूखे हैं।
‘भोग भावना नूँ ही लगदा है
असी सारे उस दा दित्ता ही खाँदें हाँ।’